ऐसा मैंने साईनाथ से जाना है.
अज्ञानता से ज्ञान तक की टोर्च है.
चीज़ें उतनी उलझी हुई नहीं, जितनी लगती हैं
और उतनी असंभव भी नहीं होती हैं.
कमी होती है तो चेतना में, या फिर कर गुज़रने के समर्पण में.
कब तक कोई हमें बताये की क्या करना है,
न कर पाए, गलत हुआ ऐसा सोच कर क्यों डरना है.
ज़िन्दगी को जिज्ञासा का नाम दो,
आगे बड़ो , गिरो , फिर उठो , सीखो और कोशिश करो.
ऐसा साईनाथ ने सिर्फ कह के नहीं बताया है
अपने कर्म से हमें कर के सिखाया है.
मायूसी छोटी हो या बड़ी हो
तुम प्रेरणा लो और एक सवाल करो
कि ऐसा क्यों है ...देखो चीज़ें बदलेंगी
थोड़ी ही सही, छोटी ही सही, कहीं शुरआत होगी
बंद लफ्ज़ों में ही सही तुम्हारी बात होगी.
याद रखो जिज्ञासा जीवन की पूँजी है.
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